नवा साल के नवा बिहनिया राहय अउ सुग्घर घाम के आनंद लेवत “अंजनी” पेपर पढ़त राहय।
ओतके बेरा दरवाजा के घंटी ह बाजथे।
“अंजनी” पेपर ल कुरसी म रख के दउड़त दरवाजा ल खोलथे।”अंजनी” जी काय हालचाल कइसे हस ?
“अंजनी” (सोचत-सोचत)”जी ठीक हँव।”
फेर मँय आप मन ल चिनहत नइ हँव ?
अइ…..अतका जलदी भुला गेव ? मँय “नीलिमा” तोर कांलेज वाले संगवारी।
वोह…..! अरे…..”नीलिमा” तँय।
तँय तो अतका बदल गेस की चिनहाबे नइ करत हस।ले आवा भीतर म बइठव।
अउ सुनावा काय काम बूता चलत हे आजकल।
ये “अंजनी” “नीलिमा” ल कइथे। सब बने-बने हे…..आज अब्बड़ अकन गोठ बात करबो ओकर पहिली नवा बछर के गाड़ा-गाड़ा बधाई हे।
ये बात ल सुन के “अंजनी” अचेत हसन होगे।
काबर कि आज कई साल बाद वोहा अइसन सब्द ल अपन खुद बर काकरो मुँह ले सुनत राहय।
अउ एक-एक करके जुन्ना दिन के सुरता ह ओकर आँखी के आघू म झुले ल धर लिस।
केशव पाल
मढ़ी (बंजारी) सारागांव,
तिल्दा-नेवरा रायपुर (छ.ग.)
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